स्कन्द पुराण में एक अद्भुत श्लोक है।
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान् ।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च. पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अश्वत्थः = पिपल
पिचुमन्दः = नीम
न्यग्रोधः = वट वृक्ष
चिञ्चिणी = इमली
कपित्थः = कविट
बिल्वः = बेल
आमलकः = आवला
आम्रः = आम
(उप्ति = पौधा लगाना)
अर्थात- जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ता है।
पिपल को वृक्षों का राजा कहा जाता है। इस संबंध में शास्त्रों में एक श्लोक है -
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच!!
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते!!
इसका अर्थ समझना चाहिए।विश्व का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है।
सबसे बड़ा अंटार्टिका का ग्लेशियर फट चुका है।अमेज़न ओर ऑस्ट्रेलिया के विशाल जंगलों में आग लग चुकी है।
आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पिपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा।पीपल 100 % कार्बन डाई ऑक्साइड शोषित करता है जब कि बट वृक्ष 80 % ओर नीम 75 % CO2 शोषित कर प्रति दिन कई टन शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। पीपल की छाल व पत्ते कई रोग में मदद करते है।वट वृक्ष का दूध शुक्राणु वर्धक है। कुछ लोग कहते हैं कि पीपल या बरगद पैदा नही होते।घर की व नाले की ईंटों में अपने आप उग आते हैं। भुवनेश्वर से पुरी तक सड़क के दोनों ओर वहां के वन विभाग ने पुराने समय से बरगद लगा रखे हैं।घरों में तुलसी के पौधे लगाना होंगे।
हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने "भारत " को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते है।ऑस्ट्रेलियाई फाइकस, युकलिप्टुस,पॉपुलर गुलमोहर, सिरस पर पूर्ण प्रतिबंध हो।यह वृध्दि तेजी से करते है।टिम्बर वैल्यू भी नहीं।सारे प्रदेशो के वन विभाग यही पौधे लगा कर बड़ा वन क्षेत्र दिखा रहे हैं।वह भिभाग को अपनी वन नीति में संशोधन करना चाहिए।
भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।
सत्येन्द्र सिंह (पर्यावरणविद् )
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